पुस्तक समीक्षा: सावरी

 

कैसी है सावरी की कहानी?

लिखने पढ़ने में रूचि रखने वालों के सामने अक्सर ऐसी चीज़ें आती रहती हैं कि उन्हें लेकर दिमाग़ अपने तरह की ही कल्पनाएं करने लगता है। क्रिस्टोफर नोलन की लियोनार्डो अभिनीत एक फिल्म देखी थी, इंसेप्शन, जहां वह लोगों के सपनों में घुसपैठ करके बहुत कुछ करता है और सपनों के इस संसार को नोलन ने इतने रोमांचक तरीके से फिल्माया था कि फिल्म, देखने के बाद उसका एक गहरा असर छोड़ जाती है दिमाग़ पर। दिमाग अपनी कल्पनाएं करने लगता है कि अगर हम ऐसा कर सकते तो क्या-क्या करते। इसे लेकर सबके पास अपनी फैंटेसीज हो सकती हैं।

लेकिन इसी तरह के कांसेप्ट पर अब तक कोई किताब नहीं पढ़ी थी। सावरी ऐसे ही एक कांसेप्ट पर बेस्ड कहानी है, जहां जो भी होता है वह सब दूसरों के दिमाग में घुस कर एक आभासी दुनिया में होता है, लेकिन मज़े की बात यह है कि उस सब होने का असर बाहर उन किरदारों के शरीर पर भी होता है। यानि अगर वे उस जगह मरते हैं तो उन्हें वास्तविक दुनिया में भी मरना पड़ेगा। कई बार तो न सिर्फ कहानी का नायक सौमित्र बुरी तरह कन्फ्यूज हो जाता है कि वह हकीक़त में है या सपने में— बल्कि वह सब पढ़ते हुए आप भी कन्फ्यूज हो जाते हैं कि कब कहानी सपनों में चल रही है और कब वास्तविकता में।

लेकिन यह सारा कनफ्यूजन कहानी के आखिरी पन्ने में दूर हो जाता है और आपको एक झटका लगता है कि अरे, यह ऐसा था। कह सकते हैं कि कहानी की ग्रिप आखिरी पन्ने तक चलती है।
कहानी भी कम रोमांचक नहीं है… यह फ्लैशबैक के सहारे आज़ादी के फौरन बाद के समय में शुरु होती है, जब ज़मीन पर हालात काफी खराब थे। कहानी की बैकग्राउंड कोलकाता और उस दौर के आसाम की है। नायक को अपने बीसवें बर्थडे पर, एक रहस्यमयी लड़की सावरी के ज़रिये अपने मूल पिता की एक डायरी मिलती है, जिसमें उसके पिता ने अपनी जिंदगी के कई अहम राज़ लिख रखे थे और उसके सहारे वह बताता है कि वह अब कहां और किस हाल में है। वह उम्मीद करता है कि वह असाम से भूटान तक फैले जंगलों की यात्रा करे और अगाशी पर विजय पा कर उसकी मुक्ति का साधन बने।

अब यह अगाशी कौन है, इसका संक्षिप्त परिचय देना ज़रूरी है। यह हज़ार साल पहले लोअर हिमालयन रीज़न में स्थापित एक राज्य की क्रूर राजकुमारी थी जिसे अपनी इंद्रियों पर इतना नियंत्रण था कि वह लोगों को खुली चुनौती देती है सहवास के खेल में हराने की, जहां वह हमेशा जीतती थी और हारने वाले मारे जाते थे। फिर एक बार कुछ योगी उसे हरा देते हैं लेकिन वह मुकर जाती है और उन्हें मरवा देती है। तब वे मरते योगी उसे श्राप दे जाते हैं जिससे उसका राज्य नष्ट हो जाता है और वह न जिंदों में रहती है न मुर्दों में। लेकिन वह फिर धीरे-धीरे अपनी शक्तियों को इतना बढ़ाती है कि लोगों के दिमाग में घुस कर अपना एक अलग मायालोक बना लेती है और किसी भी मर्द को वहां खींच कर कंज्यूम कर सकती है।

मुद्दा यह था कि उसके पास वह शक्तियां थीं कि उनके सहारे अमर हुआ जा सकता है और वहां भी अगाशी की उसी चुनौती से पार पाना था, उसे हराने वाली और वह भी उस मायलोक में, जो शिकार या साधक के अपने दिमाग़ में क्रियेट होता था लेकिन जहां मर्जी अगाशी की चलती थी। इसी अगाशी को जीतने की जद्दोजहद पिता को जहां एक अभिशप्त जीवन की देहरी पर पहुंचा देती है, वहीं उसे बचाने या मुक्ति दिलाने के लिये बेटे को भी अगाशी से उसी की दुनिया में जा कर वह जंग लड़नी पड़ती है। हां, इसमें उसे कई तरह की मदद भी मिलती है।

कहानी दमदार है, लिखने का तरीका भी जबरदस्त है। मुख्य आकर्षण का केंद्र, उसके पिता के अफ्रीका के नरभक्षी आदिवासियों के बीच किये दौरे और खास कर क्लाइमैक्स को कह सकते हैं, जो लंबा है लेकिन रोमांच से भरपूर है और एक तरह से नयापन लिये है तो उसकी लंबाई अखरती नहीं। हाॅरर जाॅनर में है, तो जिन पाठकों की रूचि इस जानर में है, उनके लिये बढ़िया खुराक है। कागज और प्रिंटिंग भी सही है, कवर पृष्ठ भी आकर्षक है। एमआरपी 250 है लेकिन मुझे 215 में फ्री डिलीवरी के साथ मिली थी।

Written by Nitya Kashyap

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